कबीर दास का जीवन परिचय | कबीर के दोहे
कबीर दास की रचनाएं | कबीर दास के गुरु
नमस्कार दोस्तों आज के इस ब्लॉग में हम कबीर दास के दोहे और कबीर दास के जीवन परिचय के बारे में विस्तृत रूप से जानेंगे कबीर दास के दोहे और कबीर दास के जीवन परिचय के बारे में जानने के लिए आर्टिकल को पूरा पढ़ें
कबीर दास का जीवन परिचय :
कबीर दास संत काव्य धारा के प्रमुख और प्रतिनिधि कवि हैं कबीर दास जी के जन्म के संबंध में हमेशा से विद्वानों में मतभेद रहा है कुछ विद्वानों का मानना है कबीरदास का जन्म जेष्ठ शुक्ल पूर्णिमा, सोमवार को 1398 में हुआ था जिसको लेकर विद्वानों में मतभेद है कबीर के संबंध में अनेक कथाएं जिनमें से एक कथा के अनुसार
काशी में स्वामी रामानंद का एक ब्राह्मण भक्त था (कबीर दास का जीवन परिचय)इसकी किसी विधवा कन्या को स्वामी जी ने भूलवश पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया ,पुत्रवती होने पर उसने लोक लाज के भय से पुत्र को काशी में लहरतारा नामक स्थान के पास तालाब पर छोड़ दिया यहीं से नीरू -नीमा नामक 2 जुलाहे इन्हें उठा लाए और पालन पोषण करने लगे यही बालक आगे चलकर कबीरदास हुए
कबीरपंथी कबीर का जन्म ही नहीं मानते उनका मानना है कि जब आकाश मंडल घटा तो और जब बादल आच्छादित हुए और बिजली चमक रही थी उसी समय लहरतारा नामक स्थान पर तालाब में एक कमल प्रकट हुआ फिर वह ज्योति रूप में परिणत हुई और यह ब्रह्मा स्वरूप ज्योति कबीर दास हैं यह कहानी कबीर को अलौकिक महत्व प्रदान करने के दृष्टिकोण से बनाई हुई प्रतीत होती हैं
कबीर दास जी की मृत्यु मगहर में सन 1528 में हुई थी
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कबीर दास के गुरु :
कबीर के गुरु के संबंध में एक प्रवाद प्रचलित है कबीर को गुरु की तलाश थी पर वैसा कोई व्यक्ति नहीं मिल रहा था जैसा वह चाहते थे एक बार कबीर दास गंगा तट पर सोए हुए थे उधर से स्वामी रामानंद जी गंगा स्नान के लिए गुजरे और उनका पैर कबीरदास के ऊपर पड़ गया रामानंद जी के मुख से राम-राम निकल पड़ा बस तभी से कबीरदास में रामानंद को अपना गुरु स्वीकार कर लिया कबीर दास के रामानंद जी को अपना गुरु स्वीकार करने के संबंध में एक दोहा प्रचलित है-
सतगुरु के परताप ते, मिट गयो सब दुख द्वंद |
कह कबीर दुविधा मिटी, गुरु मिलिया रामानंद ||
कबीर दास की रचनाएं :
मसि कागद छूवेव नहीं ,कलम गहि नहीं हाथ , कहकर कबीर अपने अनपढ़ होने की सूचना देते हैं तथा स्वयं ही स्पष्ट कर देते हैं कि उन्होंने अपनी रचना को लिपिबद्ध नहीं किया कबीरदास के नाम पर हिंदी में लगभग 65 रचनाएं उपलब्ध हैं किंतु इनमें से अधिकांश की प्रमाणिकता नहीं है कुछ अधिक प्रामाणिक मानी जाने वाली रचनाओं में तीन प्रमुख हैं –
- श्यामसुंदर दास द्वारा संपादित कबीर ग्रंथावली
- गुरु ग्रंथ साहब
- बीजक
बीजक के तीन भाग हैं
- साखी
- सबद
- रमैनी
कबीर के दोहे :
कबीर दास जी ने अपनी रचनाओं में हिंदू और मुसलमान दोनों की धार्मिक कुरीतियों का विरोध खुलकर किया है-
काकर पाथर जोरि के, मस्जिद लई बनाय
ता चढ़ मुल्ला बाग दे ,क्या बहरा हुआ खुदाय
पाहन पूजे हरि मिले,तो मैं पूजू पहाड़
ताते तो चाकी भली, पीस खाए संसार
कबीरदास की भाषा में पंजाबी ,राजस्थानी ,अवधि आदि अनेक प्रांतीय भाषाओं के शब्दों की खिचड़ी मिलती है इसी कारण इनकी भाषा को पंचमेल खिचड़ी कहा जाता है
कबीर दास का जीवन सारांश :
कबीरदास को छंदों का ज्ञान नहीं था परंतु छंदों की स्वच्छंदता ही कबीर के काव्य की सुंदरता बन गई अलंकारों का चमत्कार दिखाने की प्रवृत्ति कबीर में ही नहीं है पर इनका स्वाभाविक प्रयोग हृदय को मुक्त कर लेता है इनके काव्य में रूपक ,उपमा ,उत्प्रेक्षा ,यमक, अनुप्रास , विरोधाभास ,दृष्टांत आदि अलंकारों के सुंदर प्रयोग हुए हैं
संक्षेप में कहा जा सकता है कि कबीर के काव्य का सर्वाधिक महत्व धार्मिक एवं सामाजिक एकता और भक्ति का संदेश देने में है कबीर ने तात्कालिक हिंदी साहित्य और समाज को नवीन चेतना और नूतन जीवन दर्शन प्रदान किया है
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