तुलसीदास के दोहे // तुलसीदास का जीवन परिचय
नमस्कार दोस्तों आज के ब्लॉक में हम गोस्वामी तुलसीदास जी के जीवन परिचय एवं तुलसीदास के दोहे के बारे में जानेंगे ,तुलसीदास के दोहे के बारे में विस्तृत रूप से जानने के लिए आर्टिकल को पूरा पढ़ें और शेयर करें
तुलसीदास का जीवन परिचय :
भारतीय संस्कृति के उन्नायक लोकनायक गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म 1532 ईसवी को माना जाता है हालांकि उनके जीवन चरित्र से संबंधित प्रमाणिक सामग्री अभी तक उपलब्ध नहीं हो पाई है विभिन्न विद्वानों के मतों के आधार पर इनका जन्म 1532 ईसवी को माना जाता है तुलसीदास जी की जन्म स्थान के विषय में भी तीन मत प्रचलित है –
- उत्तर प्रदेश के बांदा जिले का राजापुर ग्राम
- एटा का सोरों नामक स्थान
- गोंडा जिले का वाराह क्षेत्र
तुलसीदास का जीवन स्थान :
तुलसी चरित्र में इनका जन्म स्थान राजापुर बताया गया है कुछ विद्वान स्वयं तुलसी द्वारा रचित पंक्ति“मैं पुनि निज गुरु सं मुनि, कथा सो सूकरखेत “ के आधार पर उनका जन्म स्थल एटा जिले के सोरों नामक स्थान को मानते हैं जबकि कुछ अन्य विद्वानों का मत है कि सूकरखेत को भ्रम वश सोरों मान लिया गया है वस्तुतः य गोंडा जिले में सरयू नदी के किनारे स्थित सूकर खेत अर्थात वाराह क्षेत्र है
इन तीनों मतों की इनके जन्म स्थल को राजापुर मरने वाला मत ही सर्वाधिक अच्छा समझा जाता है आचार्य रामचंद्र शुक्ल और रामबहुरी शुक्ल ने भी राजापुर का ही समर्थन किया है
तुलसीदास के दोहे :
जन श्रुति के आधार पर यह माना जाता है कि तुलसीदास जी के पिता का नाम आत्माराम दुबे तथा माता का नाम हुलसी था माता के नाम के प्रमाण में रहीम का दोहा कहा जाता है-
सुरतिय नरतिय नागतिय, सब चाहत आश होय |
गोद लिए हुलसी फिरै तुलसी सो सूत होय ||
तुलसीदास जी को बचपन में ही माता-पिता ने त्याग दिया था और इनका बचपन अनेकानेक आपदाओं के बीच व्यतीत हुआ ऐसे अनाथ बालक को सौभाग्य से स्वामी नरहरिदास जैसे गुरु का आशीर्वाद प्राप्त हुआ इन्हें की कृपा से तुलसीदास को शास्त्रों के अध्ययन का अवसर मिला कुछ समय के पश्चात तुलसीदास स्वामी जी के साथ काशी चले गए जहां परम विद्वान महात्मा सनातन जी ने इन्हें वेद वेदांग ,दर्शन ,इतिहास ,पुराण आदि का परिपूर्ण ज्ञान दिया
तुलसीदास के दोहे (रत्नावली से प्रेम ) :
तुलसीदास जी का विवाह एक ब्राह्मण कन्या रत्नावली से हुआ अपनी इस रूपवती पत्नी के प्रति तुलसीदास जी अत्यधिक अत्यधिक आसक्त थे इस पर क्रोधित होकर उनकी पत्नी ने कहा-
लाज ना लागत आपको दौरे आयहूं साथ |
धिक धिक ऐसे प्रेम को , कहां कहूं मैं नाथ ||
अस्थि चर्म मय देह तम, तामें ऐसी प्रीति |
तैसी जो श्रीराम में ,होती ना तो भवभीति ||
यह बात तुलसीदास को ऐसी लगी कि वह विरक्त हो गए और काशी आ गए यहां से फिर अयोध्या चले गए इसके बाद यह तीर्थ यात्रा करने निकले और जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम ,द्वारका होते हुए कैलाश मानसरोवर तब गए अंत में चित्रकूट आकर बहुत दिनों तक रहे और यहीं पर इन्होंने श्रीरामचरितमानस का वर्णन किया लेखन किया अपनी अधिकांश रचनाएं काशी और अयोध्या में ही लिखी
बाबा गोस्वामी तुलसीदास जी का स्वर्गवास 1630 ईसवी में काशी में हुआ उनकी मृत्यु के संबंध में एक दोहा प्रचलित है-
संवत सोलह सो असी , असी गंग के तीर |
श्रावण शुक्ला सप्तमी ,तुलसी तज्यो शरीर ||
तुलसीदास के दोहे एवं रचनाएं :
तुलसीदास जी ने विविध विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई तुलसीदास जी ने दोहे लिखे काव्य लिखें उनके द्वारा लिखे गए तुलसीदास के दोहे निम्नलिखित है
तुलसीदास द्वारा रचित तुलसीदास के दोहे- दोहावली ,गीतावली,कवितावली ,श्रीरामचरितमानस रामाज्ञा प्रश्नावली ,विनय पत्रिका, हनुमान बाहुक, पार्वती मंगल, जानकी मंदिर ,वैराग्य संदीपनी, बरवै रामायण, श्री कृष्ण गीतावली आदि
नोट – श्री रामचरितमानस तुलसीदास का सर्वाधिक लोकप्रिय महाकाव्य भाषा, भाव ,उद्देश्य, कथावस्तु, चरित्र चित्रण ,संवाद सभी दृष्टि से हिंदी साहित्य का अद्वितीय ग्रन्थ है
भाषा के संबंध में स्वयं तुलसीदास जी ने कहा है –
का भाषा का संस्कृति ,भाव चाहिए सांच |
काम जो आवे का कामरी,का ले करें कमाच ||
तुलसीदास ने अपने समय की प्रचलित सभी शैलियों में रचनाएं की और सभी शैलियों में मिली अद्भुत सफलता इनकी सर्वोच्च मुखी प्रतिभा तथा काव्यशास्त्र में गहन अंतर्दृष्टि की परिचायक है
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