जलियांवाला बाग हत्याकांड( 13 अप्रैल 1919 )
जलियांवाला बाग हत्याकांड भारत के इतिहास से जुड़ी एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है जो कि 13 अप्रैल 1919 को घटित हुई थी जलियांवाला बाग हत्याकांड की विश्व में सभी जगह घोर निंदा की गई थी भारत देश में आजादी के लिए चल रहे आंदोलनों को रोकने के लिए इस हत्याकांड को अंजाम दिया गया था
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जलियांवाला बाग हत्याकांड |
आखिर ऐसा क्या हुआ था साल 1919 में जिसके कारण जलियांवाला बाग में मौजूद बेकसूर लोगों की जान ले ली गई इस हत्याकांड का मुख्य आरोपी कौन था और उसे क्या सजा मिली इन सब सवालों के जवाब आपको आज इस आर्टिकल में जानने को मिलेंगे.
जलियांवाला बाग हत्याकांड कब हुआ :
जलियांवाला बाग हत्याकांड 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग नामक स्थान पर हुआ जिसमें लगभग 370 लोगों की हत्या हुई लेकिन यह सरकारी आंकड़ा था लोगों के मुताबिक जलियांवाला बाग गोलीकांड में 10000 से अधिक लोग मारे गए
जलियांवाला बाग में क्यों हुआ था विरोध :
रोलेट एक्ट के खिलाफ हुआ था विरोध साल 1919 में भारत में कई प्रकार के कानून लागू किए गए इन्हीं कानूनों का विरोध भारत के हर हिस्से में किया जा रहा था फरवरी 1919 में ब्रिटिश सरकार ने इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल में रौलेट नाम का एक एक्ट पेश किया था और इस बिल को इस इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल ने मार्च के महीने में पास कर दिया
रोलेट एक्ट क्या था :
इस अधिनियम के अनुसार ब्रिटिश सरकार भारत के किसी भी व्यक्ति को देशद्रोह और शक के आधार पर गिरफ्तार कर सकती है और बिना किसी कोर्ट में पेश किए जेल में डाल सकती थी इसके अलावा पुलिस बिना किसी जांच के किसी भी व्यक्ति को 2 साल तक जेल में रख सकती थी इस एक्ट ने भारत में हो रहे स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए ताकत दे दी थी इसी वजह से भारत में रोलेट एक्ट का विरोध हो रहा था
इस एक्ट की मदद से ब्रिटिश सरकार भारत के क्रांतिकारियों पर काबू पाना चाहती थी और देश की आजादी के लिए चल रहे आंदोलनों को पूरी तरह खत्म करना चाहती थी इस आंदोलन का ,इस एक्ट का महात्मा गांधी समेत अन्य क्रांतिकारियों ने विरोध किया किया इस अधिनियम के विरोध में सत्याग्रह आंदोलन पूरे देश में शुरू किया था सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत साल 1919 में जोकि बहुत सफल रहा और पूरे ब्रिटिश साम्राज्य को जड़ से हिला दिया इस आंदोलन में हर भारती ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया
जलियांवाला बाग हत्याकांड का कारण :
भारत के अमृतसर शहर में इस आंदोलन के तहत यह हड़ताल की गई थी और रोलेट एक्ट का विरोध किया गया है लेकिन धीरे-धीरे इस आंदोलन ने हिंसक आंदोलन का रूप ले लिया 9 अप्रैल ने सरकार को ब्रिटिश सरकार ने पंजाब से ताल्लुक रखने वाले दो नेताओं को गिरफ्तार कर लिया इन नेताओं के नाम डॉक्टर सैफुद्दीन और सतपाल था
इन दोनों नेताओं को गिरफ्तार करने के बाद ब्रिटिश पुलिस ने अमृतसर से धर्मशाला में स्थानांतरित कर दिया जहां उन्हें नजरबंद कर दिया गया अमृतसर के दोनों नेता यहां की जनता के बीच काफी लोकप्रिय थे और अपने नेता की गिरफ्तारी से परेशान होकर यहां के लोग 10 अप्रैल को इनकी रिहाई कराने के लिए डिप्टी कमिश्नर से मुलाकात करना चाहते थे लेकिन डिप्टी कमेटी ने इन लोगों से मिलने से इंकार कर दिया जिसके बाद गुस्साए लोगों ने रेलवे स्टेशन सहित कई सरकारी दफ्तरों को आग के हवाले कर दिया
जिससे सरकारी कामकाज को काफी नुकसान पहुंचा क्योंकि इसी के माध्यम से उस समय अफसरों के बीच संचार था और तीन अंग्रेजों की हत्या भी हो गई और इन हत्याओं से परेशान होकर ब्रिटिश सरकार ने अमृतसर की कमान जर्नल डायर के हाथ में सौंपी डायर ने 11 अप्रैल को अमृतसर के हालात को सही करने का प्रबंध शुरू कर दिया अमृतसर के हालात को सही करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने कई शहरों में नाकाबंदी कर दी और नागरिकों की स्वतंत्रता छीन ली गई , सार्वजनिक समारोह करने का आदेश छीन लिया और जहां पर 10 लोगों को इकट्ठा पाया जा रहा था उन्हें पकड़कर जेल में डाला जा रहा था
इस नियम के जरिए ब्रिटिश सरकार क्रांतिकारियों द्वारा होने वाले सभाओं पर रोक लगा रही थी और उन्हें गिरफ्तार कर रही थी ताकि क्रांतिकारी इनके खिलाफ कुछ ना कर सकें 12 अप्रैल को सरकार ने अमृतसर के दो अन्य नेताओं को भी गिरफ्तार कर लिया और इन नेताओं की गिरफ्तारी के बाद अमृतसर के लोगों की मन में सरकार के प्रति और गुस्सा भड़क गया जिसके कारण इस शहर के हालात और बिगड़ गए जिसके कारण ब्रिटिश सरकार में और सख्ती कर दी थी
जलियांवाला बाग हत्याकांड की कहानी :
13 अप्रैल 1919 अमृतसर के जलियांवाला बाग अधिक संख्या में लोग इकट्ठा हुए इस दिन इस शहर में कर्फ्यू लगाया गया था लेकिन इस दिन बैसाखी का त्यौहार भी था जिसके कारण लोग काफी संख्या में हरि मंदिर साहिब आए थे जिसके कारण जलियांवाला बाग लोग घूमने के दृष्टिकोण से जलियांवाला बाग चले गए थे क्योंकि मंदिर और जलियांवाला बाग दोनों पास- पास थे
इसी प्रकार 13 अप्रैल1919 को लगभग 20000 लोग जलियांवाला बाग में मौजूद थे जिनमें से कुछ लोग अपने नेताओं की गिरफ्तारी से नाराज होकर उन्हें छुड़ाने का प्रयास कर रहे थे तो कुछ घूमने गए थे वह इस दिन करीब 12:40 का समय था और जनरल डायर को जलियांवाला बाग में होने वाली सभा के बारे में सूचना मिली जनरल डायर करीब 4:00 बजे लगभग 200 सिपाहियों के साथ रवाना हुआ जनरल डायर को लगा यह सभा दंगे फैलाने के लिए की जा रही है
इस बाग में पहुंच कर जनरल डायर ने अपने सिपाहियों को गोली चलाने का आदेश बिना किसी चेतावनी के दे दिया और बताया जाता है कि सिपाहियों ने लगभग 10 मिनट तक गोलियां चलाई और जलियांवाला बाग से निकलने का रास्ता / द्वार भी अंग्रेज सिपाहियों द्वारा बंद कर दिया गया और जलियांवाला बाग चारों ओर से लगभग 10 फीट ऊंची दीवारों से ढका हुआ है जिसके कारण लोग दीवारें भी ना फांद कर भाग सके
जलियांवाला बाग हत्याकांड में कितने लोग मरे थे :
कई लोग अपनी जान बचाने के लिए जलियांवाला बाग में स्थित एक कुएं में कूद गए लेकिन गोलियां चलने के बाद रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी और कुछ समय बाद जलियांवाला बाग की जमीन का रंग लाल हो गया इस नरसंहार में लगभग 370 से अधिक लोगों की हत्या हुई जिनमें छोटे बच्चे और महिलाएं शामिल थी इसके अलावा जलियांवाला बाग में स्थित कुएं से लगभग 100 लाशें निकाली गई जिनमें अधिकतर बच्चे और महिलाएं थी
कहा जाता है कि लोग गोलियों से बचने के लिए में कूद गए लेकिन फिर भी वह अपनी जान नहीं बचा पाए कांग्रेस पार्टी के मुताबिक इस हादसे में करीब लगभग 10000 लोगों की हत्या हुई थी और 15 सौ से अधिक लोग घायल हुए थे लेकिन ब्रिटिश सरकार ने 370 लोगों की मृत्यु होने की पुष्टि की ताकि ब्रिटिश अंग्रेजों की छवि विश्व में खराब ना हो.
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