ओम के नियम की परिभाषा
जर्मन वैज्ञानिक डॉक्टर जॉन साइमन ओम में किसी चालक के सिरों पर लगाए गए विद्युत विभवांतर तथा उस में प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा का संबंध एक नियम के द्वारा व्यक्त किया जिसे ओम का नियम कहते हैं
“ओम के नियम के अनुसार यदि किसी चालक की भौतिक अवस्था में कोई भी परिवर्तन ना किया जाए तो उसके सिरों पर लगाए गए विद्युत विभवांतर तथा उस में बहने वाली विद्युत धारा का अनुपात नियत होता है “
ओम के नियम का सूत्र :
यदि चालक के सिरों पर लगा विद्युत विभवांतर V तथा उसमें बहने वाली धारा I हो तब ओम का नियम
ओम के नियम की व्याख्या :
ओम के नियम के अनुसार जब तक किसी चालक का ताप तथा अन्य भौतिक अवस्थाएं नहीं बदलती तब तक चालक का प्रतिरोध नियत रहता है चाहे चालक के सिरों के बीच कितना भी विद्युत विभवांतर क्यों न लगाया जाए यदि लगाए गए वैद्युत विभव तथा चालक में प्रवाहित विद्युत धारा के बीच ग्राफ खींचे तो एक सरल रेखा प्राप्त होगी ओम का नियम केवल धातु चालकों के लिए ही हैं
ओम के नियम की सीमाएं या ओम के नियम के अपवाद :
सामान्य विद्युत परिपथ में ओम का नियम लागू रहता है अर्थात एक निश्चित तौर पर परिपथ में किसी चालक के सिरों के बीच विद्युत विभवांतर संचालन में बहने वाली विद्युत धारा का अनुपात नियत रखता है विद्युत परिपथ को ओमिय परिपथ करते हैं
परंतु प्रत्येक विद्युत परिपथ में ओम के नियम का पालन नहीं होता यदि हम किसी परिपथ में प्रतिरोध तार के स्थान पर एक तार का बल्ब लगाकर उसमें विभिन्न विभवांतर पर धारा प्रवाहित करें तो विभवांतर तथा विद्युत धारा के गीत खींचा गया ग्राफ पूर्ण रूप से एक सरल रेखा नहीं आता ग्राफ का केवल प्रारंभिक भाग ही एक सरल है बाद में वक्राकार हो जाता है
इससे पता चलता है कि प्रारंभ में अनुपात नियत रहता है परंतु बाद में यह विभवांतर के बढ़ने पर बढ़ने लगता है इसका कारण यह है कि तंत्र में अधिक विद्युत धारा प्रवाहित होने पर इसका ताप बहुत अधिक बढ़ जाता है इससे इस का विद्युत प्रतिरोध भी बढ़ जाता है स्पष्ट है कि धातु के बने तारों में विद्युत धारा के लिए ही ओम के नियम का पालन होता है उच्च विद्युत धारा के लिए नहीं
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