आज के इस लेख में हम Kho kho game क्या है,Kho Kho game rules and information के बारे में जानेंगे इसके साथ ही साथ How many Players in Kho Kho team के बारे में भी बात करेंगे।
दोस्तों जिस प्रकार शरीर को ऊर्जावान बनाए रखने के लिए हम विटामिन युक्त भोज्य पदार्थों का सेवन करते हैं ठीक उसी प्रकार शरीर को फुर्तीला बनाए रखने के लिए खेल बहुत आवश्यक है।अधिकतर खेलों की बात की जाए तो उनका उदय भारत के ही ग्रामीणांचल क्षेत्रों से हुआ है जैसे कबड्डी और कुश्ती यह सभी खेल भारत में पुरातन समय से ही खेले जाते आ रहे हैं।
इसी प्रकार के आज हम एक प्रसिद्ध खेल खो खो के बारे में बात करेंगे जो भारत में प्राचीन समय से खेला जा रहा है खो-खो एक ऐसा खेल है जिसको खेलने के लिए शरीर के प्रत्येक भाग को काम करना होता है इस प्रकार अगर हम खो खो खेल खेलते हैं तब हमारे पूरे शरीर की मानसिक और शारीरिक दोनों कसरत हो जाती है आज के इस लेख में हम खो खो के इतिहास ,खो खो खेल के बारे में तथा खो खो के मैदान के बारे में संपूर्ण जानकारी देंगे यदि आप भी जानना चाहते हैं खो-खो खेल के बारे में तो इस लेख को पूरा पढ़ सकते हैं।
Kho Kho game
खो खो खेल भारत में बहुत प्राचीन समय से खेला जाने वाला खेल है खो खो की उत्पत्ति का स्रोत पकड़म पकड़ाई नामक खेल से माना जाता है खो-खो की उत्पत्ति प्रमुख रूप से भारत के बड़ौदा नामक स्थान से हुई खो-खो शब्द संस्कृत भाषा के श्यू शब्द से मिलकर बना है जिसका अर्थ है उठो जागो।
खो-खो को प्राचीन समय में विभिन्न नामों से जाना जाता था जैसे महाराष्ट्र के क्षेत्रों में यह खेल रथ के ऊपर चढ़कर खेला जाता था इसीलिए इसे रथेड़ा खेल भी कहा जाता है। मुख्य शब्द खो-खो भी मराठी भाषा का ही शब्द है।
History of Kho Kho game (खो खो खेल का इतिहास)
अभी भी भारत में कुछ खेल ऐसे हैं जो ग्रामीणांचल क्षेत्रों में खेले जाते हैं लेकिन उन्हें औपचारिक मान्यताएं नहीं दी गई है ठीक उसी प्रकार खो-खो भी एक ऐसा ही खेल था जो भारत में बहुत प्राचीन समय से खेला जाता था लेकिन आधिकारिक रूप से खो-खो फेडरेशन संघ की स्थापना 1956 में हुई। जिसके बाद 1959-60 से इस संघ ने सुचारू रूप से काम करना शुरू किया। सन 1960 में पुरुषों के लिए तथा 1961 में महिलाओं के लिए खो-खो चैंपियनशिप का पहली बार आयोजन किया गया जो कि पुणे में खेला गया इस प्रकार खो खो खेल का विकास हुआ।
खो खो खेल को अभी तक एशियन ओलंपिक खेलों में शामिल नहीं किया गया जबकि इसका प्रदर्शन मैच 1982 में खेला गया था।यह खेल मुख्य रूप से एशियाई देशों में खेला जाता है जैसे भारत ,नेपाल ,श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि।
Kho Kho ground (खो खो खेल का मैदान)
खो खो खेल को खेलने के लिए एक मिट्टी के लंबे चौड़े मैदान की जरूरत होती है जिसकी लंबाई 29 मीटर और चौड़ाई 16 मीटर होती है मैदान के दोनों सिरों पर एक दूसरे से 10 फुट की दूरी पर लकड़ी के 2 खंभे गाड़े जाते हैं। जिनकी ऊंचाई 4 फुट होती है और इन दोनों खंभों की बीच की दूरी को 8 बराबर भागों (प्रत्येक भाग 30×30 सेमी का वर्ग) में विभाजित किया जाता है वैसे तो लगभग सभी खेलों के लिए मिट्टी का मैदान ही उपयुक्त होता है लेकिन विशेषकर खो खो खेल के लिए मिट्टी का मैदान अच्छा माना जाता है जिससे खिलाड़ियों को चोट लगने की संभावना बहुत कम होती है।
Players in Kho Kho team(खो खो खेल की टीम)
खो खो खेल की टीम में 11 खिलाड़ी होते हैं जिसमें से 9 खिलाड़ी खेलते हैं और दो खिलाड़ी एक्स्ट्रा सब्टीट्यूड के रूप में रखे जाते हैं कि यदि किसी व्यक्ति को खिलाड़ी को चोट लग जाए तो उस दशा में दूसरा खिलाड़ी उसकी जगह खेल सके।
Kho Kho game Rules (खो-खो खेलने के नियम)
खो खो खेल को बालक और बालिका ने दोनों खेल सकते हैं खो खो दो टीमों के मध्य खेला जाता है एक टीम के खिलाड़ी मैदान में दोनों खम्भो के बीच बनाए गए 8 खानों में बैठते हैं जबकि दूसरी टीम के खिलाड़ी दौड़ते हैं।
बैठने वाले खिलाड़ियों को इस प्रकार बैठाया जाता है कि उनके चेहरे एक दूसरे के अल्टरनेट रहे जैसे कि पहले विद्यार्थी का मुंह आगे की ओर है तो दूसरा भी खिलाड़ी का मुंह पीछे की ओर होगा फिर तीसरे खिलाड़ी का मुंह आगे की ओर इसी प्रकार आठों बैठते हैं और एक खिलाड़ी जो विपरीत टीम के खिलाड़ियों को पकड़ने के लिए रहता है जिसे चेजर कहा जाता है।
दौड़ने वाले खिलाड़ी दूसरी टीम के खिलाड़ी होते हैं जिनके तीन तीन खिलाड़ियों के तीन ग्रुप बनाए जाते हैं और इन खिलाड़ियों के ग्रुप को रनर कहते हैं इस प्रकार मैदान में एक टीम रनर का काम करती है तो दूसरी टीम चेजर का।
बैठने वाले टीम के का प्रत्येक नवा खिलाडी दौड़ने वाली टीम का पीछा करता है वह खिलाड़ी अकेले ही पूरी टीम को आउट नहीं करता बल्कि वह समय-समय पर अपनी किसी दूसरी टीम के सदस्य को खो खो की तेज आवाज के साथ उठाता है और उसके स्थान पर खुद बैठ जाता है फिर वह उठा हुआ खिलाड़ी उस टीम के रनर का पीछा करता है और आउट करने का प्रयास करता है इसी प्रकार यह प्रक्रिया चलती रहती है।
रनिंग करने वाले खिलाड़ियों में से जब तीनों का एक ग्रुप आउट हो जाता है तब दूसरा ग्रुप मैदान में उतरता है इसी प्रकार दौड़ने वालों का भी ग्रुप चलता रहता है।
इस खेल की प्रत्येक पारी 7 मिनट की होती है इसमें एक पारी में एक टीम रनिंग करती है तो दूसरी चेजरिंग करती है फिर दूसरी टीम रनिंग करती है तो पहली टीम चेजरिंग करती है इस प्रकार यह गेम चलता रहता है।
यदि रनिंग करने वाला दूसरी टीम का खिलाड़ी या फिर उठ कर भागने वाला पहली टीम का खिलाड़ी यदि सेंट्रल लाइन को क्रॉस करता है तो उसे फाउल माना जाता है और उसे वह प्रक्रिया दोबारा करनी होती है।
खो मिलने के बाद भागने वाला खिलाड़ी अपने चेहरे की दिशा में उठकर भागता है।
कोई भी दूसरी टीम का रनर बैठे हुए खिलाड़ी को नही छू सकता है यदि वह छूता है तो उसे आउट माना जाता है इसलिए रनर हमेशा बैठे हुए खिलाड़ियों से दूरी बनाकर रखते हैं।
जो टीम अपने विपरीत टीम के अधिक खिलाडियों को आउट करती थी वह टीम विजयी मानी जाती है।
Kho Kho game (खो खो खेल में अंपायर)
खो खो खेल में दो अंपायर की आवश्यकता होती है एक अंपायर खम्भे के दाहिनी क्षेत्र को संभालता है तो दूसरा अंपायर खम्भे के बाएं क्षेत्र को संभालता है और अंपायर के साथ-साथ एक रेफरी भी होता है जो खेल में होने वाली अनैतिक गतिविधियों या फिर नियमों का उल्लंघन होने से रोकता है और जब दोनों अंपायरों के बीच मतभेद या विरोधाभास होता है तब उनका समाधान करके अंतिम रिजल्ट देता है अंपायर ही दोनों टीमों के स्कोर और विजय होने की घोषणा करता है।
Kho Kho information (खेल का आरंभ)
खो खो खेल एक तेज सिटी की आवाज के साथ चालू होता है जोकि टाइम कीपर या रेफरी द्वारा बजाई जाती है टाइम कीपर अपनी घड़ी में खेल के समय को रिकॉर्ड करता रहता है और जैसे ही खेल का 7 मिनट पूरा होता है वहां गेम आउट कर देता है।
Kho Kho game Awards (खो खो खेल के पुरस्कार)
खो खो खेल में जनपद और मंडल स्तर पर मेडल तथा शील्ड द्वारा खिलाड़ियों को पुरस्कृत किया जाता है जबकि राज्य स्तर पर खो-खो में पुरुषों के लिए एकलव्य पुरस्कार तथा महिलाओं के लिए झांसी की रानी के पुरस्कार का प्रावधान रखा गया है खो खो खेल मुख्यता उत्तर प्रदेश पंजाब ,हरियाणा आदि राज्यों में खेला जाता है।
Benefits of Kho Kho game (खो खो खेल के फायदे)
खेल कोई भी हो वह किसी न किसी रूप में हमारे शरीर को लाभ ही पहुंचाता है ठीक उसी तरह खो खो खेल को खेलने से हमारी शारीर की एक्सरसाइज तो होती ही है साथ साथ हम मानसिक रूप से भी मजबूत होते हैं।
हमारे अंदर तार्किक निर्णय क्षमता का विकास होता है और हम कम समय में बड़ा निर्णय लेने के लिए खुद को तैयार करते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि खेल खेलना सभी के लिए बहुत आवश्यक है चाहे वह जिस उम्र में हो।
खो खो खेल को खेलने से हमारे हाथ और पांव की मांसपेशियां मजबूत होती हैं तथा हम यदि खो खो खेल को खेलते हैं तो मोटा भी की समस्या से बच सकते हैं।
Kho Kho Competition (खो खो खेल में प्रतियोगिताएं)
खो खो खेल में कई स्तर पर प्रतियोगितांए कराई जाती हैं जिनके बारे में आर्टिकल में विस्तृत रूप से बताया गया है-
विद्यालय स्तरीय प्रतियोगिताएं- इस प्रकार की प्रतियोगिताओं में जिले के ही अलग-अलग विद्यालय आपस में मिलकर मैच खेलते हैं जिसमें फेडरेशन संघ का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है।
जनपद स्तरीय प्रतियोगिताएं- इस प्रकार की प्रतियोगिता में किसी राज्य के जनपद आपस में प्रतियोगिताएं आयोजित करते हैं जिसमें फेडरेशन संघ के सदस्यों को आमंत्रित किया जाता है और खिलाड़ियों को पुरस्कृत भी किया जाता है।
मंडल स्तरीय प्रतियोगिताएं-यह प्रतियोगिता किसी राज्य के अंदर मंडलों के बीच आयोजित की जाती है मंडल कई जिलों को मिलाकर बनाए जाते हैं इस प्रतियोगिता को आयोजित करने में खो-खो फेडरेशन संघ की अहम भूमिका होती है इसी से चयनित होने के बाद अभ्यर्थी आगे की प्रतियोगिताओं में सम्मिलित होते हैं।
राज्य स्तरीय प्रतियोगिताएं- यह प्रतियोगिता खो खो की सबसे बड़ी प्रतियोगिता होती है जिसमें अलग-अलग राज्यों के टी में आती हैं और उनके बीच मैच खेले जाते हैं इसी प्रतियोगिता में जीतने वाले पुरुष टीम को एकलव्य पुरस्कार और महिला टीम में झांसी की रानी पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है।
Top 3 kho kho player in India
दोस्तों अब हम भारत के तीन प्रसिद्ध खो-खो खिलाड़ियों के बारे में जानेंगे-
सतीश राय – भारत में प्रसिद्ध खो-खो खिलाड़ियों की श्रेणी में सबसे ऊपर हैं खो खो खेल के प्रति इनके जज्बे और कौशल का जितना भी बखान किया जाए वह कम ही होगा इन्होंने जनपद स्तर की प्रतियोगिताओं से लेकर राज्यस्तरीय प्रतियोगिताओं तथा देश के बाहर भी होने वाली प्रतियोगिताओं में भाग लिया। और सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया। अमेरिका में चल रही फुटबाल बेसबॉल वर्ल्ड सीरीज के तह पर भारत में 2010 में नवगठित खो-खो फेडरेशन ऑफ इंडिया ने खो खो की वर्ल्ड सीरीज का आयोजन किया जिसके लिए उच्च कौशल वाले खिलाड़ियों का संगठन बनाया गया जिसमें सतीश राय भी शामिल थे।
सारिका काले –सारिका काले भी भारतीय खो खो टीम की एक प्रसिद्ध 3 खिलाड़ियों में से एक हैं इनका जन्म महाराष्ट्र के ओसामनाबाद जिले के उमरे कोटा में हुआ था। इन्होंने खो खो खेल में खासकर महिलाओं के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है यह वर्ष 2006 से लेकर अब तक लगातार खो खो खेल रही हैं सारिका काले वर्तमान में भारतीय खो खो टीम की कप्तान भी हैं इन्हें खो-खो के इतिहास में शुमार प्रसिद्ध पुरस्कार अर्जुन पुरस्कार और छत्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है अर्जुन पुरस्कार इन्हें खो-खो फेडरेशन ऑफ इंडिया की तरफ से 2020 में मिला जबकि छत्रपति पुरस्कार इन्हें 2016 में ही मिल चुका था। सारिका काले ने महज 10 साल की उम्र से ही खो खो खेलना शुरू कर दिया था यह अपनी निपुणता के कारण आगे बढ़ती गई और 26वें खो-खो चैंपियनशिप में महाराष्ट्र का प्रतिनिधित्व किया।
पंकज मल्होत्रा – खो-खो के प्रसिद्ध अव्वल खिलाड़ियों में पंकज मल्होत्रा का नाम भी शामिल है इन्होंने अपने जुनून और खेल के प्रति जज्बे के बल पर खो खो के क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बनाई है पंकज मल्होत्रा का जन्म जम्मू कश्मीर के सैनिक कॉलोनी क्षेत्र में हुआ था इन्होंने जम्मू-कश्मीर की खो खो टीम का प्रतिनिधित्व किया और साल 2018 में भारत नेपाल के मध्य हुए खो खो मैच की पांचवी सीरीज में इंहोंने संपूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व किया। पंकज मल्होत्रा ने खो खो के क्षेत्र में दिग्गज माने जाने वाले प्रशिक्षक अजय गुप्ता और धीरज शर्मा से प्रशिक्षण लिया है पंकज मल्होत्रा ने अपनी खो खो के प्रति लगन और मेहनत के बल पर अपना एक अलग नाम बनाया है। तथा भारत के प्रमुख तीन खिलाड़ियों में अपने नाम को जोड़ा है।
आज क्या सीखा
दोस्तों आज के इस लेख में हमने खो खो खेल क्या है, खो खो खेल का इतिहास ,खो खो खेल का मैदान ,खो खो खेल में टीम के बारे में जाना साथ ही साथ हमने खो खो खेल में आयोजित होने वाली प्रतियोगिताएं तथा उनके पुरस्कारों के बारे में जाना।
Read more –
Hello,This is Devesh Dixit Owner & Author of Hindiwavs.basically i am Engineer and very passionate to explore something new in the Field of Digital marketing.